Friday, June 30, 2017

माँ

पता नहीं तुमसे फिर मुलाकात हो न हो
मेरे लौटने का इंतजार करना,
मत जाना 
रूँधे गले से जो मैंने माँ से कहा
तो हम दोनों की आँखे डबडबा गयीं
थरथराते हातों से उसने मेरा
सिर सहलाया, बाल ठीक किये
और बोली
अपने सपनों को पूरा करो
मैं तो जी चुकी बेटा !
अब तुम अपनी जिंदगी जी भर के जियो |
कुछ ख़्वाब मैंने देखे थे
उन्हें पूरा होते भी देखा है मैंने
जो ख़्वाब तुमने देखे हैं
जाओ उन्हें जगते देखो |
पंख पाते हैं तो पंछी
आगाज़ करते हैं
उनके बच्चे भी घोसला छोड़ एक दिन
ऊँची उड़ान भरते हैं |
तुम्हे ऊँचाइयों में उड़ता देख
मैं खुश हो लूंगी
ख़ुशी ख़ुशी में मैं
दो चार दिन ज्यादा ही जी लूंगी |
मगर रुकने की बात न करना
कहीं मेरे प्राण ना अटक जायें |
बहुत कोशिश की उसने
कहीं आँसू न बह जायें |
बड़े अनमने मन से मैं
वहाँ से निकला
पीछे मुड़कर न देख पाया
पर सिसकियों की आवाज़
सुनाई तो दी थी.....
कई मंज़िलें पा चुका हूँ मैं
तब से अब तक
आज भी नई ऊंचाइयों को मेरी
बुलंदियाँ छू लेती हैं
अपने खालीपन के ऊमस से
परेशान हो
जब जब पीछे मुड़कर देखता हूँ
माँ भी वहाँ अकेली खड़ी दिखाई देती है |

संदीप प्रल्हाद नागराले
१६-०७-२०१३ 

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