Thursday, January 11, 2018

महायज्ञ

एक महायज्ञ मे हमने भी
अपनी समिधा डालीं थी
उस हवनकुण्ड की अग्नी से
प्रखरित धरा की लाली थी।
हम भरतपुत्रो ने मिलकर जब
माँ भारती का आव्हान किया
दुर्जन निर्दलन की आशा में
मातृभूमी का गुणगान किया।
जब मंत्र वंदे मातरम्
वायु के वेग से मिलता था
तब धरा स्तंभित होती थी
और गगन हुंकारे भरता था।
उस यज्ञकुण्ड की ज्वाला के
अब भी निखारे जलते हैं
प्रत्येक आहुती के बदले
एक जीवन प्रज्वलित करते हैं।
- संदिप प्रल्हाद नागराले
३-१-२०१८
शिवशक्ती संगम -एक महायज्ञ के स्मरण मे.....

1 comment:

karyasthal-mitra said...

jayshankar prasad ki "himadri tung shrung se ..." kavita yaad aa gayi. Bahut khoob !