एक महायज्ञ मे हमने भी
अपनी समिधा डालीं थी
उस हवनकुण्ड की अग्नी से
प्रखरित धरा की लाली थी।
हम भरतपुत्रो ने मिलकर जब
माँ भारती का आव्हान किया
दुर्जन निर्दलन की आशा में
मातृभूमी का गुणगान किया।
जब मंत्र वंदे मातरम्
वायु के वेग से मिलता था
तब धरा स्तंभित होती थी
और गगन हुंकारे भरता था।
उस यज्ञकुण्ड की ज्वाला के
अब भी निखारे जलते हैं
प्रत्येक आहुती के बदले
एक जीवन प्रज्वलित करते हैं।
अपनी समिधा डालीं थी
उस हवनकुण्ड की अग्नी से
प्रखरित धरा की लाली थी।
हम भरतपुत्रो ने मिलकर जब
माँ भारती का आव्हान किया
दुर्जन निर्दलन की आशा में
मातृभूमी का गुणगान किया।
जब मंत्र वंदे मातरम्
वायु के वेग से मिलता था
तब धरा स्तंभित होती थी
और गगन हुंकारे भरता था।
उस यज्ञकुण्ड की ज्वाला के
अब भी निखारे जलते हैं
प्रत्येक आहुती के बदले
एक जीवन प्रज्वलित करते हैं।
- संदिप प्रल्हाद नागराले
३-१-२०१८
३-१-२०१८
शिवशक्ती संगम -एक महायज्ञ के स्मरण मे.....
1 comment:
jayshankar prasad ki "himadri tung shrung se ..." kavita yaad aa gayi. Bahut khoob !
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