Friday, February 1, 2008

मृत्यु के पदचिन्ह

चार कन्धों पर उठाकर
एक बेजान शरीर को
बोझिल कदमों से
यहां तक लाया जाता है ।

जिस शरीर का एक एक अंग
गति का अनुभव करते थे
सिर्फ क्षण भर में
निर्जिव हो जाता है ।
जो आंखें जीवन का अस्तित्व
अनुभव करतीं थीं कभी
अब शून्य को ताकती
रह जाती हैं ।
वाचालता के किस्से कहती
जीभ
अब शब्दहीन हो गई है ।

आज फिर एक शरीर
यहां लाया गया है
'राम-राम' के समुह स्वरों के साथ
शांति को भंग करते
कई ध्वनि अपने संग लाया है
शोर
पीछे बहती नदी का ।
पुरोहित के मन्त्रोचारों का ।
कौवों के कलरव का ।
परिजनों की आंहों का ।
अग्नि की चटचटाहट का ।
हड़िडयों की कड्कडाहट का ।
एक एक मनुष्य के
श्वास का ।
हृदय से निकलते
उच्छवास का ।
समयचक्र के चलनें का ।
अश्रुबिंदुऑ के ढलनें का ।

और फिर एकाएक!
सब कुछ शांत हो जाता है
पूर्ववत!
सब चले जातें हैं ।
रह जातें हैं तो सिर्फ
एक सन्नाटा
कौवों की कांव-कांव
चिता से उठता धुंवां
और दूर तक जाती
सुनीं पगडंडियां,
जिन पर छोड जाती है,
म्रूत्यु अपनें पदचिन्ह ।

सन्दीप

1 comment:

Rumy said...

yeah achi hai .. but kuch incomplete lag rahi hai ... thoda aur fine tune karna hoga ..